निर्देशक कि कलम से...
हमने प्रारम्भ से ही व्यवसायीकरण की संस्कृति से प्रभावित हुए बिना उन महत्वाकांक्षी छात्रों को सिविल सेवा के लिए तैयार किया है जिन्होंने लोक सेवा का स्वप्न संजोया है। हर वो विद्यार्थी, जो जनसेवा के माध्यम से देश-प्रदेश की सेवा करना चाहता है उस हेतु संस्थान के द्वार सर्वदा खुले हैं।
मैंने सदैव इस बात को महसूस किया है कि जिस प्रकार अध्ययन का उद्देश्य धनार्जन नहीं वरन ज्ञानार्जन होता है, ठीक उसी तरह अध्यापन भी बाजारीकरण से स्वतंत्र एक निःस्वार्थ परंपरा हो, ताकि हर वर्ग के पिछड़े और संसाधन के मोहताज का अंत्योदय हो सके। सत्यमेव जयते संस्थान ने कभी किसी विद्यार्थी में कोई भेदभाव नहीं किया,
लोक सेवा की तैयारी करने वाले हर अभ्यर्थी को संस्थान ने उसकी मंजिल के प्रति प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। सिविल सेवा की तैयारी में मेरे आरंभिक 12 वर्ष, मैंने स्वयं को ताम्र से स्वर्ण परिणति हेतु संघर्ष की भट्टी में तपाया है। उसी के बल और आधारशिला पर मैं पिछले सतत् वर्षों से चमकते शीशों को कोहिनूर बनाने को अनवरत और अविचल प्रयासरत हूँ। चूंकि मैं शिक्षक से पूर्व एक शिक्षार्थी रहा हूँ अतः विद्यार्थी जीवन की नितान्त आवश्यकताओं एवं कठिनाइयों से भली भांति परिचित हूँ। जिन्हें ध्यान में रखकर मैंने और प्रकृति मैम ने सत्यमेव जयते नामक एक ऐसा अध्ययन मंच स्थापित किया है जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अभ्यर्थियों के सपनों को मूर्त रूप प्रदान करने में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके ।
मेरा मानना है कि हर अभ्यर्थी को अपने शिक्षण काल मे एक बार सिविल सेवा की तैयारी अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि ये वो शिक्षा है जो एक सामान्य “व्यक्ति” को “व्यक्तित्व” में बदलती है। इस तैयारी के दौरान विधार्थी स्वयं को मांजता है, धैर्य का बोझ वहन करता है, परिश्रम एवं सटीक रणनीति हेतु खुद को अभ्यस्त करता है तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनता है।
तो सत्यमेव जयते परिवार से जुड़िये और ज्ञानार्जन की अद्वितीय और असाधारण परंपरा का हिस्सा बनिए, क्योंकि मेरी माताजी मुझे कहती हैं कि लक्ष्मी (धन) व्यक्ति का साथ छोड़ सकती है लेकिन सरस्वती (ज्ञान) कभी नहीं।
शत कोटि शुभकामनाओं के साथ…..
आपका शुभेच्छु
रेशु जैन
निर्देशक – सत्यमेव जयते इंस्टीट्यूट, इंदौर



